दशहरा 2025: विजय का महापर्व, नोट करें विजय मुहूर्त


RUPNAGAR (Punjab) | एस्ट्रोलॉजर अनिल कौशल

(Dussehra 2025: The Grand Festival of the Victory of Truth Over Falsehood) दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है।

यह त्योहार बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और असत्य पर सत्य की विजय का एक सशक्त प्रतीक है।

नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि उत्सव का यह समापन दिवस, धर्म की स्थापना और विजय के उल्लास का दिन है।

इस पावन अवसर पर, रावण के पुतले का दहन कर समाज को यह संदेश दिया जाता है कि धर्म और सत्य का मार्ग ही अंततः विजयी होता है।

दशहरा 2025: शुभ तिथि एवं मुहूर्त

इस वर्ष, पंचांग के अनुसार, दशहरा का पर्व गुरुवार, 2 अक्टूबर, 2025 को मनाया जाएगा।

  • दशमी तिथि का आरंभ: बुधवार, 1 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 12:12 बजे से।
  • दशमी तिथि का समापन: गुरुवार, 2 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 01:13 बजे तक।

हिंदू धर्म में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया जाता है, और चूँकि दशमी तिथि का सूर्योदय 2 अक्टूबर को होगा, इसलिए विजयादशमी का पर्व इसी दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

विजय मुहूर्त: सफलता और विजय का क्षण

दशहरा के दिन विजय मुहूर्त का विशेष महत्व है। यह वह शुभ समय है जब कोई भी नया कार्य आरंभ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

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मान्यता है कि इस मुहूर्त में किए गए कार्यों में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है।

इस दौरान शस्त्र पूजा (शस्त्रों और औजारों की पूजा) करने की भी परंपरा है, जिससे शत्रुओं पर विजय और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की कामना की जाती है।

  • विजय मुहूर्त का समय: दोपहर 01:57 से दोपहर 02:44 तक।

दशहरा का बहुआयामी महत्व

यह पर्व केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि अपने भीतर गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश समेटे हुए है:

  • श्री राम की विजय: यह त्योहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा लंका के अहंकारी राजा रावण पर विजय प्राप्त करने का स्मरण कराता है। यह धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अधर्म के विनाश का प्रतीक है।

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    माँ दुर्गा का शौर्य: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही वह दिन है जब माँ दुर्गा ने नौ दिनों के भयंकर युद्ध के बाद महिषासुर नामक राक्षस का संहार कर पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया था।


    शस्त्र पूजा: भारत के कई क्षेत्रों में, विशेषकर क्षत्रिय समुदाय में, इस दिन अपने शस्त्रों, औजारों और वाहनों की पूजा करने की परंपरा है। यह शक्ति, सम्मान और सफलता का आह्वान करने का एक प्रतीक है।


  • शुभ आरंभ का प्रतीक: दशहरा को किसी भी नए कार्य, व्यापार, या शिक्षा की शुरुआत के लिए एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है, जिसे ‘अबूझ मुहूर्त’ भी कहते हैं।

रावण दहन: बुराई के अंत का प्रतीक

दशहरा का सबसे प्रमुख आकर्षण रावण दहन है। इस दिन, रावण के साथ-साथ उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है।

यह परंपरा सिर्फ एक मनोरंजन नहीं, बल्कि अपने भीतर के अहंकार, क्रोध, और अन्य बुराइयों को समाप्त करने का प्रतीक है।

लोग खुले मैदानों और मेलों में एकत्रित होकर इस भव्य दृश्य को देखते हैं और धर्म की विजय का जयघोष करते हैं।

इस प्रकार, दशहरा 2025 न केवल उत्सव और आनंद का अवसर है, बल्कि यह साहस, धार्मिकता और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला एक महान पर्व भी है।

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