रूपनगर (पंजाब) | एस्ट्रोलजर अनिल कौशल
(The position of Mercury in the birth chart) वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि, वाणी, गणना, संचार और व्यापार का कारक माना जाता है। यह ग्रह जहाँ और जिस भाव में स्थित होता है, वहाँ अपनी विशेष छाप छोड़ता है। जन्मकुंडली में बुध की स्थिति व्यक्ति की लेखन क्षमता, आर्थिक समझ, शिक्षा, सौदेबाजी की कला और यहां तक कि उसके जीवन की दिशा को प्रभावित करती है।
ज्योतिष शास्त्र में बुध से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जो जातक के स्वभाव और भाग्य के रहस्यों को खोलते हैं। इन्हीं में से तीन विशेष नियम — रूल 16, रूल 17 और रूल 18 — न केवल बुध की शक्ति को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि अलग-अलग भावों और नक्षत्रों में इसकी स्थिति जातक के जीवन को किस प्रकार प्रभावित करती है।

अवलोकन नंबर 16
रूल नंबर 16 कहता है कि यदि बुध ग्रह तीसरे भाव में स्थित हो, तो वह सुंदर और आकर्षक लिखावट प्रदान करता है।
वैदिक ज्योतिष में तीसरा भाव हाथों का, संचार का और अभिव्यक्ति का घर माना जाता है। यह घर गायन, ऊर्जा और लेखन क्षमता से भी जुड़ा हुआ है। साथ ही, यह बुध का ही प्राकृतिक स्थान है क्योंकि तीसरे भाव का स्वामी मिथुन राशि है और उसका स्वामी स्वयं बुध है।
लेकिन यहाँ एक महत्वपूर्ण शर्त जुड़ी है—तीसरे भाव में स्थित बुध किसी भी पाप ग्रह (राहु, केतु या शनि) से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
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राहु और केतु की नवम दृष्टि से यह प्रभावित न हो।
शनि की तीसरी, सातवीं या दसवीं दृष्टि से भी बुध अछूता रहे।
यदि बुध इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हो, तो यह जातक को न केवल सुंदर और स्पष्ट लिखावट प्रदान करता है, बल्कि अभिव्यक्ति की शक्ति भी देता है।

अवलोकन नंबर 17
अवलोकन 17 के अनुसार, यदि जन्म का चंद्रमा बुध के नक्षत्र में स्थित हो, तो गंडमूल दोष उत्पन्न होता है।
बुध के तीन नक्षत्र माने जाते हैं:
- आश्लेषा नक्षत्र – 9वां नक्षत्र
- ज्येष्ठा नक्षत्र – 18वां नक्षत्र
- रेवती नक्षत्र – 27वां नक्षत्र
जब भी जन्म का चंद्रमा किसी भी राशि में इन नक्षत्रों पर स्थित हो, तब जातक गंडमूल दोष से प्रभावित माना जाता है।
यदि चंद्रमा कर्क राशि (4 नंबर राशि) में 16°40’ से 30° के बीच हो, तो यह आश्लेषा नक्षत्र में होगा।
यदि चंद्रमा वृश्चिक राशि (8 नंबर राशि) में 16°40’ से 30° के बीच हो, तो यह ज्येष्ठा नक्षत्र में होगा।
यदि चंद्रमा मीन राशि (12 नंबर राशि) में 16°40’ से 30° के बीच हो, तो यह रेवती नक्षत्र में होगा।
ऐसी स्थिति में स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि जातक का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है। ज्योतिष शास्त्र में यह दोष विशेष महत्व रखता है और इसके निवारण हेतु प्राचीन काल से ही विशेष उपाय बताए गए हैं।

अवलोकन नंबर 18
अवलोकन 18 कहता है कि यदि बुध ग्रह प्रथम, द्वितीय, दशम (10वें) या एकादश (11वें) भाव में स्थित हो, तो यह जातक के जीवन में आर्थिक समृद्धि, सौदेबाजी की कला, शिक्षा, बुद्धिमत्ता और प्रोफेशनल सफलता का संकेत देता है।
प्रथम भाव (लग्न): यहाँ स्थित बुध जातक को अत्यंत बुद्धिमान, चतुर और अभिव्यक्ति में निपुण बनाता है। उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है और मानसिक क्षमताएँ असाधारण होती हैं।
द्वितीय भाव: यह धन का घर है। यहाँ बैठा बुध जातक को पैसे की गहरी समझ, आर्थिक प्रबंधन की क्षमता और सौदेबाजी की कला प्रदान करता है। ऐसे व्यक्ति धन कमाने और बचाने में दक्ष होते हैं।
दशम भाव: यह कर्म और प्रोफेशन का घर है। यहाँ बुध जातक को व्यवसाय और नौकरी दोनों में सफलता दिलाता है। उसकी सोच व्यावहारिक होती है और वह अपनी चतुराई व बौद्धिक शक्ति से कार्यक्षेत्र में उन्नति करता है।
एकादश भाव: यह लाभ और सफलता का घर है। यहाँ बुध व्यक्ति को विद्या, शिक्षा और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति प्रदान करता है। ऐसे जातक का नेटवर्क मजबूत होता है और उन्हें जीवन में बड़े अवसर प्राप्त होते हैं।
इन चारों भावों में स्थित बुध जातक को समग्र रूप से विकसित करता है—तेज दिमाग, गणना में निपुणता, सौदेबाजी की समझ और तांत्रिक व ज्योतिषीय विद्या में दक्षता प्रदान करता है। ऐसे लोग शैक्षिक क्षेत्र, यातायात, तंत्र विज्ञान, व्यवसाय और शोध जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करते हैं।
