उपचार का परिचय

उपचार का परिचय

जन्म के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ शुभ-अशुभ ग्रहों को अपने साथ लेकर आता है तथा ग्रहों का यह शुभाशुभत्व उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। ग्रहों के अशुभत्व के कारण ही उसके दशाकाल में अनेक प्रकार की पीड़ा का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में ग्रहों के अशुभत्व के शमन हेतु अनेक प्रकार के उपाय अनुशंसित हैं। इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में हम इन्हीं उपायों की चर्चा करेंगे।

ग्रहों के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए अनेक तरह के उपाय विद्वान ज्योतिषियों द्वारा बताए जाते हैं। कोई रत्न धारण करने के लिए कहता है, कोई मंत्र जाप के लिए, कोई यंत्र पूजा के लिए, कोई रूद्राक्ष धारण करने के लिए, कोई ग्रहों की पूजा के लिए तथा कोई तांत्रिक उपाय बताता है। जातक को किस समय किस उपाय का लाभ सबसे जल्दी और सबसे ज्यादा होगा, इस विषय पर विद्वानों में मतभेद हो सकता है। ऋषियों में मतभेद का एक छोटा सा उदाहरण यहां प्रस्तुत है :

महाराज परीक्षित को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि आज से सातवें दिन तक्षक सर्प द्वारा काटे जाने से उनकी मृत्यु हो जाएगी तो राज्य और सम्पत्ति का मोह त्याग कर श्री गंगा जी के किनारे जा पहुंचे और ऋषियों से सलाह ली कि इन सात दिनों में कौन सा ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे मैं आवागमन के चक्र से छूट कर मुक्त हो जाऊं। राजा परीक्षित की बात सुनकर उनमें से एक ऋषि ने कहा- हे राजन! तीर्थ स्नान का बहुत पुण्य कहा गया है।

अतः तुम वही करो। दूसरे ऋषि ने कहा- तुम यज्ञ करो उससे तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे। तीसरे ने कहा- तुम ब्राह्मण को धन दान करो, दान से अच्छा अन्य कोई धर्म नहीं है। चौथे ऋषि बोले-देवताओं का पूजन तथा मंत्र जप करने से संपूर्ण पाप दूर हो जाते हैं अतः तुम्हारे लिए वह श्रेयस्कर है। इस प्रकार सभी ऋषियों ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार राजा को बहुत सारे उपाय बताये, परंतु किसी की बात सर्वोत्तम नहीं ठहरी। उस समय राजा परीक्षित ने हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना की। हे ऋषिश्वरों आप लोगों ने जो उपाय बताये हैं वे सभी श्रेष्ठ हैं, परन्तु इनके लिए समय की आवश्यकता है। मेरी मृत्यु में केवल सात दिन ही शेष रह गये हैं, अतः आप लोग कोई ऐसा उपाय बताएं, जो एक सप्ताह में ही संपन्न हो सके। जिस समय यह विचार विमर्श चल रहा था, उसी समय नारद मुनि की प्रेरणा से पंद्रह वर्ष की आयु वाले परम तेजस्वी परम हंस श्री शुकदेव जी सभा में पधारे। उनको देखकर सभी ऋषि मुनि और महात्मागण आदरपूर्वक खड़े हो गए। तदुपरांत उन सबने अत्यंत आदरपूर्वक श्री शुकदेव जी को अपने पास में सबसे ऊंचे आसन पर विराजमान किया। तब शुकदेव जी के पितामह श्री पराशर ऋषि जी ने कहा कि ये उम्र में हम सबसे छोटे और ज्ञान में सबसे बड़े हैं।

भवसागर से पार उतारने के लिए जो कर्म सबसे उत्तम है, ये तुम्हें उस कर्म का बोध कराएंगे। उस कर्म को करने से तुम मुक्त हो जाओगे। तब महाराज परीक्षित के विनय पर श्री शुकदेव जी बोले- हे राजन! जिसकी मृत्यु निकट आ गई हो उसे संसार सिंधु से पार होने के लिए भगवान श्री श्याम सुंदर की कथाओं के सुनने और स्मरण करने से अधिक उत्तम मार्ग और कोई भी नहीं है।

अब जो सम्पूर्ण पुराणों में सर्वश्रेष्ठ है तथा जिसमें भगवान श्री कृष्णचंद्र जी के चरित्रों का वर्णन है और जिसे मैंने अपने पिता श्री वेद व्यास जी से पढ़ा है उसी “श्री मद्भागवत् महापुराण” को हम तुम्हें सात दिनों में सुनाएंगे, जिसके सुनने से समस्त शास्त्रों के सुनने का पुण्य मिल जाता है, अतः इसे सब वेदों का तत्व जानना चाहिए। इस कथा के श्रवण करने से मन विरक्त होकर भगवद् भजन में लग जाता है और वह सहज ही भवसागर से पार हो जाता है। मूल विषय पर आने से पहले यह दृष्टांत इसलिए कहा गया कि सभी उपाय कारगर होते हैं, आवश्यकता सिर्फ समयानुकूल निर्णय लेने की है, जो हम विद्वान ज्योतिषियों पर छोड़ रहे हैं। सभी उपायों को लिखना संभव नहीं है।

उपाय किसका करें ?

कैसे जाने की किस ग्रह का अशुभ प्रभाव पड़ रहा है ? जन्मपत्री के विश्लेषण द्वारा भी यह जाना जाता है कि किस ग्रह के अशुभ प्रभाव से जातक परेशान है। जन्मपत्री न होने की स्थिति में कुछ साधारण नियम लिखे गए हैं जिससे पता चल जाता है कि किस ग्रह की वजह से परेशानी है। नवग्रहों से संबंधित परेशानियां और बीमारियां निम्नलिखित हैं :

ग्रह एवं संबंधित कष्ट

सूर्यपिता से संबंध ठीक न होना, सरकार से परेशानी, सरकारी नौकरी में परेशानी, सिरदर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, चर्म रोग, अस्थि रोग, पीलिया, ज्वर, क्षय रोग, मस्तिष्क की दुर्बलता आदि।
 चंद्रमामाता से संबंध ठीक न होना, मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, कफ, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, मासिक धर्म संबंधी रोग, पित्ताशय की पथरी, निमोनिया आदि।
मंगलक्रोध अधिक आना, भाइयों से संबंध ठीक न होना, दुर्घटनाएं होना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, फोड़ा-फुसी, उच्च रक्तचाप, बवासीर, चेचक, प्लेग आदि।
बुधविद्या, बुद्धि संबंधी परेशानियां, वाणी दोष, मामा से संबंध ठीक न होना, स्मृति लोप, मिर्गी, गले के रोग, नाक का रोग, उन्माद, मति भ्रम, व्यवसाय में हानि, शंकालु, अस्थिर विचार आदि।
गुरुपूजा में मन न लगना, देवताओं, गुरुओं और ब्राह्मणों पर आस्था न रहना, आय में कमी, संचित धन व्यय होना, विवाह में देरी, संतान में देरी, मूर्छा, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज,अनिद्रा आदि।
शुक्रपत्नी सुख में बाधा, प्रेम में असफलता, वाहन से कष्ट, शृंगार के प्रति अरूचि, नपुंसकता, हर्निया,मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधित रोग, गर्भाशय रोग आदि।
 शनिनौकरों से क्लेश, नौकरी में परेशानी, वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी, भूत-प्रेत का भय, चेचक, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, नपुंसकता, पैरों में तकलीफ आदि।
राहुदादा से परेशानी, अहंकार हो जाना, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, मस्तिष्क रोग, भूत-प्रेत का भय आदि।
केतुनाना से परेशानी, जादू टोना से परेशानी, छूत की बीमारी, रक्त विकार, दर्द, चेचक, हैजा आदि।

इस प्रकार यह निर्धारण होने पर कि किस ग्रह से परेशानी हो रही है, उसके उपाय के बारे में सोचा जाता है।

जन्मपत्री से उपाय निर्धारण करने के लिए जिन बातों पर विचार किया जाता है उन पर गौर करें :

  • केन्द्र और त्रिकोण की क्या स्थिति है।
  • कौन-कौन से ग्रह अस्त वक्री हैं।
  • कौन से ग्रह शत्रु क्षेत्री हैं।
  • योग कारक ग्रहों की क्या स्थिति है।
  •  कौन से ग्रह नीच व उच्च के हैं।
  • महादशा व अन्तर्दशा स्वामियों की आपस में क्या स्थिति है।
  • कौन सा भाव ज्यादा पीड़ित है।
  • कौन सा ग्रह ज्यादा पीड़ित है।
  • कुंडली में बनने वाले महत्वपूर्ण योग क्या हैं।
  • जिस भाव के बारे में विचार कर रहे हैं, उस भाव, भावेश और कारक की क्या स्थिति है।
  • महादशा और अन्तर्दशा स्वामी कुंडली के लिए योग कारक है, बाधक है या मारक है।
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  • विभिन्न वर्गों में ग्रहों की क्या स्थिति है।

 इन सभी बातों का विचार करके ही यह निर्धारण किया जाता है कि किस ग्रह का उपाय करें।

उपाय क्या करें?

कुंडली में लग्न व चंद्रमा की स्थिति से व्यक्तिके स्वभाव का अंदाजा लगाइये। उसके स्वभाव के अनुकूल ही उपाय बताइये। यदि किसी का चंद्रमा, गुरु और नवम भाव पीड़ित है और आप उसे कोई पूजा पाठ का उपाय बताते हैं तो वह करेगा ही नहीं। ऐसे व्यक्तिको रत्न या तंत्र का उपाय बताएं। ग्रह कैसी राशि में है यह निर्धारित करता है कि कौन सा उपाय फल देगा।

ग्रह यदि अग्नि तत्व राशि में है तो यज्ञ, व्रत आदि, ग्रह यदि पृथ्वी तत्व राशि में है तो रत्न, यंत्र, धातु धारण आदि, ग्रह यदि वायु तत्व राशि में है तो मंत्र जाप आदि, ग्रह यदि जल तत्व राशि में है तो उसकी वस्तुओं को पानी में बहाना, औषधि स्नान आदि से लाभ होगा।

योग कारक ग्रह निर्बल है तो रत्न, यंत्र और धातु द्वारा उपचार करना चाहिए। अशुभ और मारक ग्रहों का उपचार पूजा पाठ, दान या ग्रह की वस्तु को बहाकर किया जाता है।

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