पुत्रदा एकादशी 2025: संतान सुख का दिव्य व्रत, जब आस्था देती है आशीर्वाद


(Putrada Ekadashi is a holy festival dedicated to Lord Vishnu) पुत्रदा एकादशी, भगवान विष्णु को समर्पित वह पावन पर्व है जो संतान की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को यह व्रत विशेष फलदायी होता है। मान्यता है कि जो दंपती पूर्ण श्रद्धा से इस दिन व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार—

प्राचीन काल में महिष्मति नगरी के राजा महीजित संतानहीन थे। उन्होंने वैदिक आचार्यों, ब्राह्मणों और ऋषि-मुनियों से पूछा कि संतान क्यों नहीं हो रही है। ऋषि लोमश ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा, अपनी प्रजा व परिवार समेत इस व्रत का पालन करते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें योग्य संतान की प्राप्ति होती है। इस कथा से मिलता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत कामनापूर्ति तथा विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए प्रभावकारी है।

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पुत्रदा एकादशी का व्रत हर वर्ष दो बार—पौष और श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो संतान चाहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना, कथा श्रवण और दान से मनुष्य को महान पुण्य प्राप्त होता है। पौराणिक कथा अनुसार, विधिपूर्वक व्रत करने से राजा महीजित जैसे कई भक्तों को संताने मिली हैं। आज भी लोगों में इस व्रत को लेकर विशेष आस्था है, जिससे पारिवारिक सुख-शांति और संतान-सुख की कामना पूरी होती है

पूजन विधि और शुभ योग

पूजन देवता : लक्ष्मी नारायण जी की विधिवत पूजा करें
व्रत की अवधि : 04 अगस्त सुबह 11:41 से 05 अगस्त दोपहर 01:12 तक

शुभ योग :

  • इंद्र योग – सुबह 07:25 तक
  • रवि योग – सुबह 05:18 से 11:23 तक
  • शिववास योग – दोपहर 01:13 से

इन योगों में पूजन करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस व्रत से क्या लाभ होता है?

  • संतान सुख की प्राप्ति
  • गृहस्थ जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली
  • मनोवांछित फल की प्राप्ति
  • आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति

पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह व्रत मुख्यतः संतान प्राप्ति और संतान के सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है। प्रत्येक वर्ष पौष और श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर, व्रत और दान-पुण्य करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है, और पहले से संतान होने पर उनकी रक्षा, आरोग्य तथा दीर्घायु का आशीर्वाद भी मिलता है

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