बिल्व पत्र में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, जिससे यह और भी पूजनीय हो जाता है
रूपनगर (पंजाब) । एस्ट्रोलोजर अनिल कौशल
(Bel Patra: The Easiest Path to Absolution and Shiva’s Grace) हिन्दू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान उनकी आराधना का विशेष महत्व है। इस पवित्र माह में शिव भक्तों के लिए बिल्व पत्र (बेल पत्र) अर्पित करना पापों से मुक्ति और शिव कृपा पाने का एक सरल और अत्यंत प्रभावशाली मार्ग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बिल्व पत्र में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, जिससे यह और भी पूजनीय हो जाता है।

बिल्व पत्र: त्रिदेवों का प्रतीक और आध्यात्मिक शक्ति का वाहक
बिल्व पत्र के तीन दल त्रिदेवों के प्रतीक माने जाते हैं: ब्रह्मा (सृष्टि के लिए), विष्णु (पालन के लिए) और शिव (संहार के लिए)। जब भक्त शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाते हैं, तो वे एक साथ इन तीनों देवताओं की आराधना करते हैं। अध्यात्म में, बिल्व पत्र के ये तीन दल सत्व, रज और तम – इन तीन गुणों का भी प्रतीक होते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि का आधार हैं।
शास्त्रों के अनुसार, बिल्व पत्र की एक अनूठी विशेषता यह है कि इसमें तीन जन्मों के पापों का नाश करने की शक्ति होती है। शिव पुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“बिल्वपत्रस्य दर्शनं, स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोर पाप संहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।”
यानी, बिल्व पत्र का केवल दर्शन करने, स्पर्श करने या भगवान शिव को अर्पित करने मात्र से ही बड़े से बड़े पापों का नाश हो जाता है। यह मंत्र इस बात को सिद्ध करता है कि बिल्व पत्र केवल एक पत्ता नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का एक प्रबल वाहक है।
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है बेल वृक्ष
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति बेल वृक्ष के नीचे स्थित शिवलिंग की पूजा करता है, वह न केवल असीम पुण्य अर्जित करता है, बल्कि मोक्ष की ओर भी अग्रसर होता है। इसके अतिरिक्त, जो भक्त बेल वृक्ष के नीचे बैठकर अपने सिर पर जलधारा अर्पित करते हैं, उन्हें समस्त पवित्र नदियों में स्नान करने के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। बिल्व पत्र की शीतलता भी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, यह उनकी उग्रता को संतुलित कर उन्हें शांति प्रदान करती है, यही वजह है कि श्रावण मास में इसका विशेष महत्व है।
बिल्व पत्र के विकल्प और अर्पण के नियम
यदि किसी कारणवश प्राकृतिक बिल्व पत्र उपलब्ध न हों, तो भक्त सोने, चांदी या तांबे से निर्मित बिल्व पत्र बनवाकर भी भगवान शिव को अर्पित कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इन धातु के बिल्व पत्रों से पूजन करने का फल भी उतना ही मिलता है जितना वनस्पतिजन्य पत्र से मिलता है।
यदि आपने किसी विशेष संख्या में बिल्व पत्र चढ़ाने का संकल्प लिया है, तो उसका पूर्ण पालन आवश्यक है। प्रतिदिन उतनी ही या उससे अधिक संख्या में बिल्व पत्र चढ़ाने चाहिए, लेकिन एक बार अधिक संख्या में चढ़ाने के बाद अगले दिन कम नहीं करना चाहिए।
पुण्य का अनुपम फल: आक, कनेर और बिल्व पत्र
पुराणों में वर्णित है कि यदि कोई भक्त एक आक (मदार) पुष्प, एक कनेर का फूल और एक बिल्व पत्र संयुक्त रूप से शिवलिंग पर अर्पित करता है, तो उसे दस स्वर्ण मुद्राएं दान करने के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। इसके अलावा, केवल बेल वृक्ष का दर्शन और स्पर्श करने से भी कई प्रकार के पापों का नाश होता है, क्योंकि यह वृक्ष स्वयं शिवतत्त्व से युक्त माना गया है।
सावन 2025 में, इन नियमों और मान्यताओं का पालन करते हुए भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करें और उनकी असीम कृपा तथा पापों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें!
