ग्रहों से संबंधित देवताओं की पूजा
कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की पीड़ा के शमन के लिए ग्रहों से संबंधित देवताओं की पूजा की जाती है। वे ग्रहों के देवता होते हैं, जैसे सूर्य के देवता अग्नि, चंद्र के वरुण आदि हैं। इन देवताओं की पूजा करने स्बावत ग्रहों के दोषों का शमन हो जाता है तथा ये ग्रह अपना अशुभत्व छोड़कर जातक को हर प्रकार सुन फल प्रदान करते हैं।
ग्रह जनित कष्टों को दूर करने के लिए ग्रहों की पूजा के साथ-साथ उस ग्रह विशेष से संबंधित देवता व बका देवता की पूजा का विधान भी शास्त्रों में मिलता है। जह से संबंधित देवता इस प्रकार हैं :
ग्रह | देवता | लाल किताब के अनुसार देवता |
सूर्य | अग्नि | विष्णु |
चंद्र | वरूण (जल) | शिव |
मंगल | सुब्रह्मन्य (शिवपुत्र जो गणेश के बाद हुआ) | हनुमान |
बुध | महाविष्णु | दुर्गा |
बृहस्पति | इन्द्र | ब्रह्मा |
शुक्र | शचिदेवी (इन्द्र की पत्नी) | लक्ष्मी |
शनि | ब्रह्म | भैरव |
राहु | भैरव | सरस्वती |
केतु | गणेश | गणेश |
कौन सा नक्षत्र किस जातक को कैसा फल देगा यह तारा चक्र से जाना जाता है। जन्म नक्षत्र से प्रारम्भ करके सभी नक्षत्रों की स्थिति को जानते हैं। जन्म नक्षत्र से आगे सम्पत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, मित्र और अतिमित्र होते हैं। जन्म, विपत, प्रत्यरि व वध श्रेणी में आने वाले नक्षत्र अच्छा फल नहीं मिलता। इस नक्षत्रों की पूजा उसी दिन करनी चाहिए जिस दिन गोचर में ये नक्षत्र हों। जन्म-नक्षत्र की पूजा बस जातक को निश्चित रूप से लाभ होता है
किस नक्षत्र के देवता कौन हैं इसे निम्न सारिणी से देखें
नक्षत्रों से संबंधित देवता
नक्षत्र | देवता | नक्षत्र ग्रह | नक्षत्र | देवता | नक्षत्र ग्रह |
अश्विनी | अश्विनी | केतु | स्वाति | पवन | राहु |
भरणी | काल | शुक्र | विशाखा | शुक्राग्नि | गुरु |
कृतिका | अग्नि | सूर्य | अनुराधा | मित्र | शनि |
रोहिणी | ब्रह्मा | चन्द्र | ज्येष्ठा | इन्द्र | बुध |
मृगशिरा | चंद्रमा | मंगल | मूला | नियंति | केतु |
आर्द्रा | रूद्र | राहु | पूर्वाषाढ़ा | जल | शुक्र |
पुनर्वसु | अदिति | गुरु | उत्तराषाढ़ा | विश्वेदेव | सूर्य |
पुष्य | बृहस्पति | शनि | श्रवण | विष्णु | चन्द्र |
अश्लेषा | सर्प | बुध | धनिष्ठा | वसु | मंगल |
मघा | पित्तर | केतु | शतभिषा | वरूण | राहु |
पूर्वा फाल्गुनी | भग | शुक्र | पूर्वा भाद्रपद | अजैकापाद | गुरु |
उत्तरा फाल्गुनी | अर्यमा | सूर्य | उत्तरा भाद्रपद | vkfgZcqZ/U; | शनि |
हस्त | सूर्य | चन्द्र | रेवती | पूषा | बुध |
चित्रा | विश्वकर्मा | मंगल |
हमारे शरीर की दसों इन्द्रियों में दस देवताओं का वास है। इन्हें इस प्रकार जानें
इद्रियाऔर उनक देवता
इन्द्रियां | देवता | इन्द्रियां | देवता |
मुख | अग्नि | नेत्र | सूर्य |
जीभ | वरूण | लिंग | मित्रावरूण |
कान | दिशा | गुदा | यम |
नाक | अश्विनी कुमार | पैर | विष्णु |
हस्त | इन्द्र | बुद्धि | ब्रह्मा |
इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मुख से प्रसाद सेवन करना चाहिए। जीभ से प्रभु का भजन कर चाहिए। कानों से हरि कथा सुननी चाहिए। नाक से प्रभु को अर्पित किए जा चुके फूलों को सूंघना चाहि हाथ से दान देना चाहिए। नेत्रों से देव मन्दिर में प्रभु के दर्शन करने चाहिए। पैरों से तीर्थ यात्रा का चाहिए।बुद्धिसे प्रभु स्मरण करना चाहिए।
गणेश जी की पूजा
कोई भी कार्य शुरु करना हो तो सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना की जाती है ताकि हमारे सभी कार्य fufoZ/u रुप से पूर्ण हो जाएँ। किसी भी देव की पूजा करनी हो, हवन करना हो, मंत्र जाप करना हो, कोई च्या कार्य शुरु करना हो तो सर्वप्रथम गणेश जी को ही मनाया जाता है क्योंकि वे ही विघ्नहर्ता हैं।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
गणेशजी का पूजन करने के लिए गणेश जी को नमस्कार करें, आह्वान करें, आसन अर्पण करें,पाद्य अर्पित करें. अर्घ्य अर्पित करें, आचमन के लिए जल अर्पित करें, स्नान के लिए जल अर्पित करें, पंचामृत, इजल, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध-पुष्प-धूप-दीप, नैवेद्य अर्पित करें, ताम्बूल अर्पित करें, दक्षिणा चढ़ायें, अती करें व नमस्कार करें। गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आप प्रतिदिन गणेश चलीसा, गणेश आरती कर सकते हैं। गणेश जी के विभिन्न रूपों की उपासना करने से क्या फल प्राप्त बाद इस प्रकार हैं :
गणेश जी के विभिन्न रूप एवं उनकी उपासना के फल
उपासना | फल | |
1 | संतान गणपति | संतान प्राप्ति के लिए |
2 | विघ्नहर्ता गणपति | कलह एवं सर्वविघ्नों का नाश करने के लिए |
3 | विद्या प्रदायक गणपति | ज्ञान और विद्या की प्राप्ति के लिए |
4 | विवाह विनायक गणपति | विवाह के लिए |
5 | धनदायक गणपति | धन प्राप्ति के लिए |
6 | चिंता नाशक गणपति | चिंताओं की समाप्ति के लिए |
7 | सिद्धिदायक गणपति | सिद्धि प्राप्ति के लिए |
8 | आनन्द दायक गणपति | आनन्द और प्रसन्नता के लिए |
9 | विजयसिद्ध गणपति | कोर्ट कचहरी से छुटकारा व विजय प्राप्ति के लिए |
10 | ऋणमोचन गणपति | ऋण मुक्ति के लिए |
11 | रोग नाशक गणपति | रोगों से मुक्ति के लिए |
12 | . नेतृत्व शक्ति विकासक गणपति | नेतृत्व शक्ति पाने के लिए |
गणेश जी को 12 नामों से स्मरण किया जाता है।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिंगाक्ष्यं गजवक्त्रां चतुर्थकम्।।
लम्बोदरं पन्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं च धूम्रवर्ण तथाष्टमम्।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।
पहला वक्रतुण्ड, दूसरा एकदन्त, तीसरा कृष्णपिङ्गक्ष, चौथा गजवका, पांचवां लम्बोदर, छठा विकट, सातवां विघ्नराजेन्द्र, आठवां धूम्रवर्ण, नवां भालचंद्र, दसवां विनायक, ग्यारहवां गणपति और बारहवां गजानन। इन बारह नामों का जो पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता है और सब प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
धनतेरस पूजा
दीपावली से दो दिन पहले त्रयोदशी को घर के बड़े बूढ़े गृहस्थी में गृहलक्ष्मी के काम आनेवाली वस्तुएं खरीदते हैं। आम तौर से घर के मुखिया के लिए शुभ धातु के बर्तन खरीदे जाते हैं। सायंकाल घी और तेल के दीप यम के निमित्त जलाए जाते हैं। उत्साहपूर्वक श्री महालक्ष्मी के स्वागत हेतु अपने घर को साफ करके आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। इस दिन धन्वंतरी वैद्य का प्राकट्य हुआ था। अतः धन्वंतरी की स्मृति में दीप जलाया जाता है। इस दिन धन्वंतरी जी की पूजा करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है और अकालमृत्यु नहीं होती। कुछ लोग इस दिन से ही लक्ष्मी जी की पूजा शुरू कर देते हैं। धनतेरस नाम होने की वजह से धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है
लक्ष्मी जी की पूजा
भौतिक जगत में कोई भी कार्य लक्ष्मी जी की कृपा के बिना पूरा नहीं होता। धन प्राप्ति के लिए धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा सभी करते हैं। दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को महालक्ष्मी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। महालक्ष्मी के साथ-साथ सरस्वती जी गणेश जी, दुर्गा जी, कुबेर जी, बही खाते, लेखनी, तुला आदि का भी पूजन किया जाता है। आठों दिशाओं में अष्ट सिद्धियों का वास होता है। अष्ट लक्ष्मी पूजा इसी प्रकार पूर्व दिशा से शुरू करें :
अष्टलक्ष्मी मंत्र
दिशा | मंत्र |
ॐ अणिम्ने नमः (पूर्व) | ॐ आद्यालक्ष्म्यै नमः |
ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोण) | ॐ विद्यालक्ष्मयै नमः |
ॐ गरिम्ने नमः (दक्षिण) | ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः |
ॐ लघिम्ने नमः (नैर्ऋत्य) | ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः |
ॐ प्राप्त्यै नमः (पश्चिम) | ॐ कामलक्ष्म्यै नमः |
ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्य) | ॐ सत्य लक्ष्म्यै नमः |
ॐ इशितायै नमः (उत्तर) | ॐ भोग लक्ष्म्यै नमः |
ॐ वशितायै नमः (ईशान) | ॐ योग लक्ष्म्यै नमः |
इस प्रकार लक्ष्मी पूजन करके लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी स्तोत्र व लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए। इससे पूरा वर्ष घर में अन्न और धन की कमी नहीं होती।