Houses Hold the Biggest Secrets: शरीर का हर अंग, कुंडली का एक घर: जानिए कैसे

रूपनगर (पंजाब) | एस्ट्रोलॉजर अनिल कौशल

(The first blessing is a healthy body…) “पहला सुख निरोगी काया,” यह कहावत हम सबने सुनी है। स्वास्थ्य ही जीवन का सबसे बड़ा धन है। वैदिक ज्योतिष, जिसे ‘ज्योतिष’ के नाम से जाना जाता है, केवल भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाने का विज्ञान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू का एक गहरा खाका प्रस्तुत करता है, जिसमें हमारा स्वास्थ्य सर्वोपरि है।

हमारी जन्म कुंडली, जो हमारे जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का एक आकाशीय नक्शा है, असल में हमारे स्वास्थ्य की एक विस्तृत मार्गदर्शिका है। इस कुंडली में 12 भाव (घर) होते हैं, और प्रत्येक भाव जीवन के एक विशिष्ट क्षेत्र के साथ-साथ हमारे शरीर के विभिन्न अंगों और उनसे जुड़ी संभावित स्वास्थ्य समस्याओं का भी प्रतिनिधित्व करता है।

त्रिदोष और ग्रह संबंध: हमारा शरीर वात, पित्त और कफ इन तीन दोषों से बना है। जब ये दोष असंतुलित होते हैं, तो बीमारियां पैदा होती हैं।


➡️ जीवन साथी के साथ संबंध कैसे रहेंगे, यदि बुध जातक की कुंडली में इस भाव में, VIDEO जरुर देखें ..

ज्योतिष में, प्रत्येक ग्रह का इन दोषों से सीधा संबंध है –

वात दोष:

इसे नियंत्रित करने वाले ग्रह शनि, राहु और चंद्र हैं। यदि ये ग्रह कुंडली में कमजोर या पीड़ित हों, तो वात से जुड़ी समस्याएं, जैसे जोड़ों का दर्द या तंत्रिका तंत्र की समस्याएं, हो सकती हैं।

पित्त दोष:

सूर्य, मंगल और केतु पित्त दोष को दर्शाते हैं। ये ग्रह पाचन, गर्मी और चयापचय से संबंधित हैं। इन ग्रहों की खराब स्थिति से एसिडिटी, त्वचा रोग या उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कफ दोष :

बृहस्पति, शुक्र और चंद्र कफ दोष से जुड़े हैं। ये ग्रह शरीर में पानी, बलगम और स्थिरता को नियंत्रित करते हैं। इनके असंतुलन से कफ से संबंधित रोग, जैसे मोटापा, जुकाम या साइनस की समस्याएं हो सकती हैं।

नक्षत्र और शारीरिक अंग : नक्षत्रों का स्वास्थ्य से संबंध

हर नक्षत्र का हमारे शरीर के किसी विशेष अंग से गहरा संबंध होता है। जन्म के समय जिस नक्षत्र में चंद्र होता है, उस नक्षत्र से संबंधित अंग व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है।

अश्विनी नक्षत्र : यह सिर और मस्तिष्क से जुड़ा है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वालों को सिर दर्द या मानसिक तनाव से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं।

भरणी नक्षत्र : यह जननांगों को नियंत्रित करता है, और इस नक्षत्र के प्रभाव से प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

मृगशीर्ष नक्षत्र : यह नासिका और श्वसन तंत्र से संबंधित है, और इसकी कमजोर स्थिति सांस से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकती है।


कुंडली के अलग-अलग भावों में बैठे ग्रह, उन पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, और भाव के स्वामी की स्थिति यह निर्धारित करती है कि हमारे शरीर का कौन सा अंग मजबूत या कमजोर हो सकता है। किसी भाव या उसके स्वामी के पीड़ित होने पर उस भाव से संबंधित अंगों में रोग उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है।

  • पहला भाव (लग्न): यह हमारे समग्र स्वास्थ्य, शरीर, व्यक्तित्व और मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है।
  • छठा भाव: इसे “रोग भाव” भी कहा जाता है। यह सीधे तौर पर बीमारियों, चोटों और हमारे दैनिक स्वास्थ्य से जुड़ा है।
  • आठवां भाव: यह लंबी और गंभीर बीमारियों, आयु और मृत्यु का कारक माना जाता है।
  • बारहवां भाव: यह भाव अस्पताल, छिपी हुई बीमारियों और स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय को दर्शाता है।

निश्चित रूप से, यहाँ इन भावों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए संक्षिप्त ज्योतिषीय निदान और उपाय दिए गए हैं:


भावों के अनुसार संक्षिप्त निदान और उपाय

पहला भाव (लग्न): समग्र स्वास्थ्य के लिए

यदि लग्न या लग्नेश पीड़ित हो तो व्यक्ति का पूरा स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है।

  • निदान/उपाय:
    • अपने लग्नेश (लग्न के स्वामी ग्रह) को मजबूत करें। संबंधित ग्रह का मंत्र जाप या रत्न (विशेषज्ञ की सलाह पर) धारण करें।
    • सूर्य को प्रतिदिन जल अर्पित करें और गायत्री मंत्र का जाप करें। यह आत्मबल और ऊर्जा को बढ़ाता है।
    • नियमित व्यायाम, योग और सात्विक आहार को जीवन का हिस्सा बनाएं।

छठा भाव (रोग भाव): बीमारियों से बचाव के लिए

यह भाव सीधे तौर पर रोगों को इंगित करता है। इसके पीड़ित होने पर बार-बार बीमार पड़ना या ऋण-रोग-शत्रु से परेशानी होती है।

  • निदान/उपाय:
    • रोगों और शत्रुओं से रक्षा के लिए “हनुमान चालीसा” या “दुर्गा कवच” का नियमित पाठ करें।
    • जरूरतमंदों और बीमार लोगों की सेवा करें। पशुओं, विशेषकर कुत्तों को भोजन कराएं।
    • अपनी दिनचर्या को अनुशासित रखें और किसी भी प्रकार के व्यसन से बचें।

आठवां भाव (गंभीर रोग): आयु और गंभीर समस्याओं के लिए

यह भाव लंबी और कष्टदायक बीमारियों का संकेत देता है, जिनका निदान मुश्किल होता है।

  • निदान/उपाय:
    • भगवान शिव की उपासना करें। “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करना सर्वोत्तम उपाय है, यह जीवन रक्षा करता है।
    • शनिवार के दिन शनिदेव से संबंधित वस्तुओं (जैसे तेल, काले तिल, जूते-चप्पल) का दान करें।
    • गहन ध्यान (Meditation) और आध्यात्मिक कार्यों से इस भाव के नकारात्मक प्रभावों में कमी आती है।

बारहवां भाव (अस्पताल/छिपे रोग): व्यय और मानसिक शांति के लिए

यह भाव अस्पताल में भर्ती होने, छिपी हुई बीमारियों और मानसिक तनाव को दर्शाता है।

  • निदान/उपाय:
    • अस्पतालों, वृद्धाश्रमों या धार्मिक स्थलों पर दान-पुण्य और निस्वार्थ सेवा करें।
    • अच्छी और गहरी नींद के लिए ध्यान और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
    • अपने इष्टदेव की नियमित पूजा-अर्चना करें, यह मानसिक शांति और सुरक्षा प्रदान करती है।

कृपया ध्यान दें: ये सामान्य उपाय हैं। किसी भी सटीक निदान और व्यक्तिगत उपाय के लिए पहले अपनी कुंडली का पूर्ण विश्लेषण आवश्य करवाएं।

Previous Post