ज्योतिष के तीन खास नियम: बुध, बृहस्पति और सूर्य की स्थिति से जीवन के राज़

(Mercury-Jupiter Kendra Yoga which gives success in journalism and writing.) ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति, डिग्री और आपसी संबंध व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। बुध, बृहस्पति और सूर्य से जुड़े विशेष योग न केवल जातक के करियर और विद्वता को दर्शाते हैं, बल्कि उसके स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति के बारे में भी महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।

इस लेख में हम तीन खास नियमों पर चर्चा करेंगे—

  • -जब बुध राहु-केतु की अक्ष पर हो और स्वास्थ्य पर असर डाले।
  • -बुध-बृहस्पति केंद्र योग जो पत्रकारिता और लेखन में सफलता देता है।
  • -बुध-सूर्य की डिग्री संबंध जो विद्वता, लिखावट और आर्थिक स्थिति का रहस्य खोलता है।
  • इन ज्योतिषीय नियमों के माध्यम से आप किसी भी जन्मकुंडली में स्वास्थ्य, करियर और व्यक्तित्व की गहराई से पहचान कर सकते हैं।

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रूल नंबर 10 क्या कहता है?

जन्म कुंडली के 6वें, 8वें या 12वें भाव में यदि बुध राहु-केतु की अक्ष (Axis) पर स्थित हो, तो यह प्रायः नाड़ियों से संबंधित रोग उत्पन्न करता है।
ज्योतिष में 6वां भाव रोग स्थान कहलाता है, जबकि 8वां भाव असाध्य रोग स्थान माना जाता है। 6, 8 और 12वें भाव को सामूहिक रूप से त्रिक स्थान या “अशुभ स्थान” भी कहते हैं।

राहु और केतु सदैव एक-दूसरे के ठीक सामने रहते हैं, जिसे उनकी एक्सिस कहा जाता है।
उदाहरण के लिए —

  • यदि राहु 1वें भाव में और केतु 7वें भाव में हो, तो 1 और 7 भाव राहु-केतु की अक्ष पर होंगे।
  • यदि केतु 6वें भाव में और राहु 12वें भाव में हो, तो 6 और 12 भाव इस अक्ष में आएंगे।

इसी प्रकार, 2 और 8 भाव भी राहु-केतु एक्सिस बना सकते हैं।

यदि इस राहु-केतु अक्ष पर बुध आकर बैठ जाए, विशेष रूप से 6, 8 या 12वें भाव में, तो यह संकेत देता है कि जातक को जीवन में कभी न कभी नाड़ियों से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
कब यह रोग प्रकट होगा, यह दशा और गोचर पर निर्भर करता है, लेकिन मूल संभावना जन्मकुंडली से स्पष्ट हो जाती है।

ऐसे योग में जातक को नर्व डिसऑर्डर, सिज़ोफ्रेनिया, डिमेंशिया, हृदय रोग, या मस्तिष्क संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

रूल नंबर 11 क्या कहता है?

जन्मकुंडली में बुध और बृहस्पति का एक-दूसरे से केंद्र स्थान में होना, व्यक्ति को पत्रकारिता (Journalism) और ग्रंथकारिता (Authorship) में सफलता दिलाने वाला प्रमुख योग है।

यदि आप अपने बच्चे को पत्रकारिता में भेजना चाहते हैं, उसे साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहते हैं, या किताबें लिखने की दिशा में प्रोत्साहित करना चाहते हैं, तो यह योग उसकी क्षमता का मजबूत संकेत है।
इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति आपके पास आकर कहे—
“मैं पत्रकारिता में हूं, लेकिन बड़ी सफलता नहीं मिल रही, क्या मेरा स्कोप है?”
तो इसे जांचने का सबसे आसान तरीका है केंद्र योग देखना।

केंद्र स्थान जन्मकुंडली के 1वें, 4थे, 7वें और 10वें भाव को कहा जाता है।
जब बुध और बृहस्पति इनमें से किसी भी दो केंद्र भावों में आमने-सामने या एक-दूसरे से केंद्र में स्थित हों, तो यह योग व्यक्ति को उत्कृष्ट पत्रकार, नामी लेखक और साहित्य जगत का जाना-माना व्यक्तित्व बना सकता है।

इसे पहचानने का सरल तरीका—

यदि 1वें भाव में बुध और बृहस्पति एक साथ हों,

या 1वें भाव से 4थे, 7वें या 10वें भाव में इनमें से कोई एक स्थित हो और दूसरा केंद्र भाव में हो,
तो यह बुध-बृहस्पति केंद्र योग बनता है, जो पत्रकारिता व साहित्य में विशेष सफलता देता है।

रूल नंबर 12 क्या कहता है?

नियम संख्या 12 के अनुसार, यदि जन्मकुंडली में बुध का भोगांश (डिग्री) सूर्य के भोगांश से आगे हो और वह अत्यधिक निकट स्थित हो, तो जातक अत्यंत विद्वान होता है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति उतनी सशक्त नहीं रहती।

उदाहरण के लिए — यदि किसी भाव में सूर्य 8° पर और बुध 10° पर स्थित है, तो यह योग व्यक्ति को ज्ञानवान बनाता है। हालांकि, केवल इस आधार पर उसकी आर्थिक समृद्धि का निश्चित आकलन नहीं किया जा सकता। कई बार आप देखेंगे कि अत्यंत विद्वान व्यक्ति किसी धनी व्यक्ति के अधीन उसकी कंपनी या फर्म में काम करता है। ऐसे में धनवान व्यक्ति स्वयं उतना विद्वान न होते हुए भी आर्थिक रूप से अधिक सक्षम होता है।

ऐसे योग वाले जातकों में एकाग्रता (Concentration) की क्षमता उत्कृष्ट होती है और उनकी लिखावट (Handwriting) भी बहुत सुंदर होती है। जन्मकुंडली का विश्लेषण करते समय कोई भी व्यक्ति इस आधार पर इसे पहचान सकता है।

इसके विपरीत, यदि बुध सूर्य से पीछे हो —
उदाहरण: किसी भाव में बुध 8° और सूर्य 11° पर हो — तो प्रायः यह पाया गया है कि ऐसे जातकों के पिता की लिखावट अत्यंत सुंदर होती है।

आशा है, बुध से जुड़ी यह ज्योतिषीय जानकारी आपके ज्ञान में मूल्यवर्धन करेगी।

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