ग्रहों की पूजा
ग्रहों के अशुभ प्रभावों से रक्षा के लिए ग्रहों की पूजा का विधान है। जो ग्रह कुंडली में
अशुभ होते हैं, उस ग्रह अथवा महादशानाश / अंतर्दशानाश की पूजा एवं इनके मंत्रों का
जाप पूरे विधि-विधान से करने से संबंधित ग्रह अपने अशुभत्व को छोड़कर जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं।
किसी भी पर्व-त्यौहार और शुभ मांगलिक कार्य पर नवग्रह का विधिवत् पूजन करते हुए सभी ग्रहों की शांति के लिए इस श्लोक का उच्चारण किया जाता है :
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।।
हे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु शांति
सभी मानवों पर उनके जन्म के समय और राशियों के अनुसार नवग्रहों का प्रभाव होता है। जन्मकुंडली में किसी ग्रह का प्रभाव शुभ और किसी ग्रह का अशुभ होता है। ग्रहों के अशुभ प्रभाव से सुरक्षा के लिए उस ग्रह की विशेष पूजा की जाती है। विधिवत् पूजा, आराधना, यज्ञ और दान से ग्रहों की शांति होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं और अशुभ फलों में कमी आती है। ग्रहों की पूजा, मंत्र जप, दशांश का होम, होम का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। किसी योग्य ब्राह्मण की देख-रेख में सभी कार्य करने पर अवश्य ही फल मिलता है।
नवग्रह पूजन विधि
सभी ग्रहों के पूजन के लिए आवश्यक वस्तुएं पहले से ही एकत्र कर लें। पूजन प्रारम्भ
करने के बाद किसी वस्तु के लिए नहीं उठना चाहिए। नवग्रह की पूजा करने वाला आराधक
ब्रह्म मुहूर्त में अपने इष्ट देवी देवता का स्मरण करता हुआ बिस्तर से उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान के लिए जल में गंगाजल अवश्य मिला लें। पूजन के समय साधक को पूर्व दिशा की ओर व पुरोहित को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पालथी मारकर बैठना चाहिए। मन ही मन अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए अपने ऊपर जल छिड़क कर शुद्ध करें और मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपि वा।
यः स्मरेतु पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यंतरः शुचिः।।
हे ब्रह्माण्ड के स्वामी जगदीश्वर! हम आपका स्मरण करके अपने को पवित्र करते हैं।
इसके बाद विभिन्न मंत्रों के उच्चारण द्वारा निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं।
1. आसन पर जल छिड़कते हुए आसन को शुद्ध करना चाहिए।
2. अनेक प्रदेशों में नवग्रह पूजन के समय यज्ञोपवीत परिवर्तन की परम्परा है। आराधक को नया यज्ञोपवीत पहना कर पूजन पर बिठाया जाता है।
3. यदि पति-पत्नी साथ बैठे तो पुरोहित को गठबंधन कराना चाहिए।
इसके बाद दाहिने हाथ से तीन बार जल का पान करते हुए निम्न शब्दों का उच्चारण करें
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः।
4. जल आचमन के बाद ॐ हृषिकेशाय नमः उच्चारित करते हुए हाथ को शुद्ध करें।
5. इसके बाद घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
6. इसके बाद नवग्रह पूजन का संकल्प करते हुए प्रार्थना करें कि हे ज्योति स्वरूप भगवान ! मेरे मन में अच्छे विचार उत्पन्न करो। हे सूर्य, वरूण, इंद्र, बृहस्पति और विष्णु! आप हम पर अपनी कृपा बनाए रखें और कल्याण करें।
7. इसके बाद संकल्पपूर्वक नवग्रह का पूजन प्रारम्भ करते हैं।
8. सर्वप्रथम भगवान गणेश का आह्वान करके पूजन किया जाता है।
9. गणेश पूजन के बाद शास्त्रों में वर्णित विधि से नवग्रहों का पूजन करते हैं।
सूर्य ग्रह पूजन
नवग्रहों में सूर्य ही सबसे प्रमुख हैं और सबको ऊर्जा प्रदान करते हैं। सूर्य देवता की पूजा करने वाले को रविवार को उपर्युक्त विधि से गणेश पूजन करने के पश्चात सूर्य देव का आह्वान करना चाहिए। सूर्य स्थापना के पश्चात गणेश पूजन की तरह पूजा सम्पन्न करें और सूर्य का स्मरण करते हुए सूर्य के मंत्रों व बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र, श्री आदित्य हृदय स्तोत्र व सूर्य द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके पश्चात अपनी सामर्थ्य अनुसार गेहूं, गुड़, तांबा, माणिक्य व लाल वस्त्र का दान करना चाहिए। सूर्य पूजा के साथ भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। रविवार को ही सूर्य पूजा व व्रत करें। रविवार का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ करके कम से कम बारह या मनोकामना पूर्ति तक रखें। सूर्यास्त से पूर्व गेहूं की रोटी, गुड़ या चीनी के साथ खायें। नमक नहीं खाना चाहिए।
चंद्र ग्रह पूजन
चंद्रमा पृथ्वी के सबसे समीप है। इसका मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव होता है। चंद्र देव का पूजन करने के लिए सफेद पुष्पों को हाथ में लेकर चंद्र देव का आह्वान करें कि क्षीर सागर से उत्पन्न चंद्र देव, रोहिणी के साथ पधार कर अर्घ्य ग्रहण करें और मेरा कल्याण करें। इसके बाद गणेश पूजन की तरह पूजा सम्पन्न करें और चंद्रमा के मंत्रों, बीज मंत्र व सोम गायत्री व चंद्र कवच स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। सोमवार को पूजा के पश्चात व्रत भी रखना चाहिए। अपनी सामर्थ्य अनुसार चांदी, मोती, श्वेत वस्त्र, कपूर, घी, चावल व जल पूर्ण घट का दान करना चाहिए। सोमवारी व्रत ज्येष्ठ या श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारम्भ करें। श्रावण मास के चार सोमवारों का व्रत रखने से सोलह सोमवारों के व्रत का फल मिलता है।
श्रावण मास के चार सोमवारों का व्रत रखने से सोलह सोमवारों के व्रत का फल मिलता है।
सोमवार के व्रत तीन तरह से रखे जाते हैं :
1. प्रति सोमवार
2. सोम्य प्रदोष व्रत
3. सोलह सोमवार व्रत
इस दिन शिव पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए। दिन-रात में केवल एक समय भोजन करें।
मंगल ग्रह पूजन
मंगल को भूमि पुत्र भी कहा जाता है। वैवाहिक जीवन में सुख, शांति के लिए मंगल की आराधना, पूजन व व्रत का बहुत महत्व है। हनुमान जी की पूजा से भी मंगल का अशुभ प्रभाव नष्ट होता है। मंगल देव की पूजा के लिए हाथ में लाल फूल लेकर उनका आह्वान करें कि हे मंगल देव आप पधारें और हमारे सभी कष्ट दूर करें। इसके बाद गणेश पूजन के समान ही पूजा सम्पन्न करें और मंगल के मंत्र, बीज मंत्र, भौम गायत्री व मंगल कवच का पाठ करें। मंगलवार का व्रत करें और अपनी सामर्थ्य अनुसार लाल वस्त्र, तांबा, मसूर की दाल, मूंगा व स्वर्ण दान करें। मंगलवार के व्रत में गेहूं और गुड़ का भोजन दिन रात में एक ही बार करना चाहिए। यह व्रत कम से कम 21 रखने चाहिए। मंगलवार को हनुमान जी की भी पूजा करनी चाहिए।
बुध ग्रह पूजन
सर्य के सबसे नजदीक रहने वाला बुध मनुष्य के व्यक्तित्व, विद्या, हास्य व्यंग्य की क्षमता और स्वर को प्रभावित करता है। बुध देवता के आह्वान के लिए हरे रंग के पुष्प हाथ में लेकर प्रार्थना करें कि हे बुध देव आप पधारें और हमारे कष्टों का निवारण करें। इसके बाद गणेश पूजन के समान ही पूजा सम्पन्न करें। बुध के मंत्र जप, बुध गायत्री व बुध कवच का पाठ करें। बुधवार का व्रत करें और अपनी सामर्थ्य अनुसार हरे रंग का वस्त्र, पन्ना, कांस्य पात्र व स्वर्ण दान करें। बुधवार का व्रत ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से प्रारम्भ करके कम से कम 27 रखने चाहिए। भोजन दिन रात में एक ही बार करना चाहिए।
बृहस्पति ग्रह पूजन
बृहस्पति को देवताओं का गुरु, व्यायशास्त्र और वेदों का ज्ञाता कहा जाता है। बृहस्पति की पूजा शुक्ल पक्ष में बृहस्पतिवार से ही करनी चाहिए। ऐसी कन्याओं को बृहस्पति की पूजा अवश्य करनी चाहिए जिनके विवाह में देरी हो रही हो या विवाह में बार-बार अवरोध हो रहा हो। बृहस्पति देव का पूजन करने के लिए हाथ में पीले फूल लेकर इस प्रकार आह्वान करें कि हे बृहस्पति देव आप पधारकर स्थान ग्रहण करें और हमारी पूजा स्वीकार करें। इसके पश्चात् गणेश पूजन के समान ही पूजन करें। बृहस्पति के मंत्र, बीज मंत्र, बृहस्पति गायत्री व बृहस्पति स्तोत्र का पाठ करें। पूजन के पश्चात पीले वस्त्र, चने की दाल, पुखराज व स्वर्ण का दान करें। बृहस्पतिवार का व्रत करें। बृहस्पतिवार का व्रत शुक्ल पक्ष के पहले वीरवार (बृहस्पतिवार) से प्रारम्भ करके कम से कम 16 व्रत या मनोकामना की पूर्ति तक रखें। इस दिन पीली वस्तुओं का प्रयोग करें। इस दिन केले के पेड़ की पूजा भी की जाती है। व्रत में दिन रात में एक ही बार भोजन करें। नमक नहीं खाना चाहिए। भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए।
शुक्र ग्रह पूजन
शुक्र ग्रह का संबंध दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से है। श्वेत पुष्प हाथ में लेकर शुक्र देव का पूजन करने के लिए आह्वान करें कि हे शुक्र देव आप सर्वशास्त्रों के ज्ञाता हैं, आप पधार कर स्थान ग्रहण करें और हमारे कष्टों का अंत करें। गणेश पूजन के समान पूजन करते हुए मंत्र, बीज मंत्र, शुक्र गायत्री, शुक्र स्तोत्र व शुक्र कवच का पाठ करें। तत्पश्चात् श्वेत वस्त्र, चावल, घी, सुगंधित वस्तुएं व गाय दान करें। शुक्रवार का व्रत करें। शुक्रवार का व्रत भी शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से प्रारम्भ करके 2] शुक्रवार तक करें। इस दिन श्वेत वस्त्र धारण करके दूध-चीनी-चावल से बनी खीर का भोग लगाकर स्वयं खाएं।
शनि देव पूजन
सूर्य पुत्र शनि देव बड़े-बड़े नेत्रों वाले और विशाल शरीर वाले हैं। शनि की साढ़े साती सभी के जीवन में अपना प्रभाव दिखाती है। शनि देव का पूजन व व्रत शनिवार को करना चाहिए। पूजन के समय कृष्ण वर्ण के फूल हाथ में लेकर शनि देव का आह्वान करें कि हे शनि देव आप पधार कर स्थान ग्रहण करें और हमारे कष्टों का अंत करें। गणेश पूजन के समान पूजन करते हुए शनि के मंत्र, बीज मंत्र, शनि गायत्री, शनि कवच आदि का पाठ करें। तत्पश्चात् सामर्थ्य अनुसार तिल, तेल, उड़द, काले रंग का वस्त्र व स्वर्ण दान करें। शनिवार के व्रत में शनि की पूजा होती है। काला तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द शनि को बहुत प्रिय है। इसलिए इनके द्वारा शनि पूजा होती है। रात को काली उड़द की दाल की खिचड़ी स्वयं खाएं व दूसरों को खिलाएं। शनिवार का व्रत भी शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से प्रारम्भ करके 21 शनिवार तक करें।
राहु देव पूजन
समुद्र मंथन के समय जब राहु ने देवताओं के साथ अमृत पान कर लिया था तभी से राहु और केतु को पूजा का भाग दिया जाता है। राहु ग्रह की पूजा शनिवार को करने से शुभ फल मिलते हैं। हाथ में नीले फूल लेकर राहु का आह्वान किया जाता है कि हे महाबलशाली राहु आप स्थान ग्रहण करें और हमारे दुखों का अंत करें। गणेश पूजन के समान पूजन करते हुए राहु के मंत्र, बीज मंत्र, राहु स्तोत्र, राहु कवच का पाठ करें। तत्पश्चात् अपनी सामर्थ्य अनुसार तेल, स्वर्ण, गोमेद व काले रंग का वस्त्र दान करें।
केतु देव पूजन
राहु और केतु को छाया ग्रह कहा गया है। केतु ग्रह की पूजा मंगलवार को होती है। राहु शनिवत् व केतु मंगलवत् फल देते हैं। पूजा के समय हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें कि हे मस्तक विहीन रौद्र रूपधारी केतु देवता हम आपका आह्वान करते हैं। आप पधार कर स्थान ग्रहण करें और हमारे कष्टों का अंत करें। गणेश पूजन के समान पूजन करते हुए केतु के मंत्र, बीज मंत्र, केतु स्तोत्र व केतु कवच का पाठ करें। तत्पश्चात अपनी सामर्थ्य अनुसार कंबल, कस्तूरी, तिल का तेल व स्वर्ण दान करें।
इस प्रकार सभी ग्रहों की पूजा के पश्चात् विसर्जन भी किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि हे देव यदि पूजा में, मंत्र जाप में, आह्वान में या विसर्जन में कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करें और मेरे कष्टों का अंत करें। ग्रहों की पूजा के लिए किसी योग्य ब्राह्मण की सहायता जरूर लें।
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